सरस्वती शिशु मंदिर तुषार

सरस्वती शिशु विद्या मंदिर तुषार



                 संक्षिप्त परिचय

       

सरस्वती शिशु विद्या मंदिर तुषार  (जैजैपुर) के संचालक एवं प्रधानाचार्य श्री लीलाधर सिंह चन्द्रा जी* का जन्म वर्तमान सक्ति जिला के जैजैपुर विकास खंड अंतर्गत ग्राम पंचायत तुषार (जैजैपुर) में श्री शंकर लाल ( नटवर सिंह चन्द्रा ) जी एवं श्रीमती अमृत कुमारी चन्द्रा जी के जेष्ठ पुत्र  के रूप में दिनांक 13 अप्रैल 1975 चैत्र शुक्ल द्वितीया विक्रम संवत 2032  दिन रविवार को ब्रह्ममूर्त में 4 बजे हुआ।
          

आप लोग दो भाई एवं चार बहन हैं  । आपकी प्रारंभिक शिक्षा पैतृक गाँव तुषार एवं ननिहाल भोथीडीह में रहकर  शिकारीनर के शासकीय प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक श्री चंद्रिका गुरुजी के सान्निध्य में रहकर प्राप्त किए, एवं पूर्व माध्यमिक की शिक्षा शासकीय पूर्व माध्यमिक शाला दतौद में  श्री गोपाल राम चन्द्रा प्रधान पाठक एवं श्री पण्डित राम चन्द्रा कक्षाचार्य के सान्निध्य में रहकर पुर्ण हुई , जहां से लीलाधर सिंह चन्द्रा जी ने मेधावी छात्र के रूप में परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त कर अपने गुरुजनों एवं माता पिता का नाम रोशन किए तथा उच्चतर माध्यमिक की शिक्षा स्वामी विवेकानन्द उच्चतर माध्यमिक विद्यालय करनौद से पुर्ण हुआ।
      आपका विवाह वर्तमान सक्ति जिले के अंतर्गत आने वाले ग्राम

पंचायत बरभांठा (डभरा) निवासी श्री फिरंगी लाल चन्द्रा एवं श्रीमती सुमित्रा देवी चन्द्रा के चतुर्थ पुत्री श्रीमती ललिता देवी चन्द्रा से हुआ है, जो कुशल गृहणी के साथ साथ आपके द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर तुषार में वरिष्ठ आचार्या, शिशु वाटिका के पद पर रहकर अपनी कर्तव्यों का पूर्ण निष्ठा से पालन करते हुए आपको संबल प्रदान कर रहीं हैं।
       श्री लीलाधर सिंह चन्द्रा जी बचपन से ही मेहनती ,निष्ठावान एवं संघर्षशील रहे है उन्होंने पढ़ाई के साथ ही साथ योग एवं अध्यात्म से जुड़कर अपने अस्वस्थता को दूर कर स्वस्थ जीवन प्राप्त किए और योगाचार्य के रूप में आज भी सेवा देते हुए स्वस्थ रहने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
     

श्री लीलाधर सिंह चन्द्रा जी अनुशासन प्रिय, सत्यनिष्ठ ,राष्ट्रवादी कर्तव्य परायण , व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। स्पष्टवादी होने के कारण कभी कभी आपको लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ता है परन्तु आप अपने सिद्धांत पर अडिग रहते हैं।
         आपने शिक्षा प्राप्ति के बाद महज २१ वर्ष की आयु में सन् 1995 में आध्यात्म के प्रति लगन लगाते हुए जीवन निर्माण करने वाले युग शिल्पी सत्र जो शांति कुंज हरिद्वार में चलती है वहाँ से युग ऋषि सूक्ष्म सत्ता के आहवान पर माता भगवती देवी के आंचल पकड़ कर गुरु दिक्षा संस्कार प्राप्त कर एक माह की संजीवनी साधना कर ग्राम लौटे। आपने शिक्षा व दिक्षा प्राप्त कर नौकरी न करने का निर्णय लेते हुए अपने पैतृक गाँव में ही बच्चों को शिक्षा देकर  लोगो की सेवा करने के उद्देश्य से सत्र 1994 से  चल रहे सरस्वती शिशु मन्दिर जो स्थान अभाव के कारण बंद होने की कगार पर थी उसे सन 2000 में अपने निज निवास में  ही संचालन कर रहे हैं। आपके विद्यालय में विभिन्न प्रकार के गतिविधियों का आयोजन देखने को मिलता ही रहता है जिसमें सांस्कृतिक, नैतिक, सामाजिक उत्थान के लिए कार्य करते रहते हैं।
         आपने *विद्या भारती के पांच आधार  योग , शारीरिक , संगीत ,

संस्कृत  नैतिक एवं अध्यात्मिक शिक्षा*  और विद्याभारती के छः आयाम साक्षरता, स्वास्थ्य , स्वावलंबन सामाजिक चेतना और स्वदेश प्रेम की भावना जन जन के मन में भरने का काम कर रहें हैं। **आपने सन् २०११ में बाबा रामदेव जी के द्वारा कालाधन एवं भ्रष्टाचार के विरोध में चलाए जा रहे भारत स्वाभिमान यात्रा में शामिल होकर हजारों भारत स्वाभिमान यात्रीयों के साथ गिरफ्तारी देकर  24 घंटे के लिए जेल में भी रहें।*
        आपका एक ही लक्ष्य है कि ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्व निष्ट एवं राष्ट्र भक्ति से ओतप्रोत हो, ऐसे बच्चों का निर्माण करना है जिनके चेहरे पर आभा , शरीर में बल और मन में प्रचण्ड इच्छा शक्ति हो , बुद्धि में पांडित्य हो जीवन में* स्वावलंबन हो , और जिनके हृदय में वीर शिवा , राणा प्रताप, ध्रुव , प्रहलाद की जीवन गाथाएं अंकित हो और जिन्हें देखकर महापुरुषों की स्मृतियां झंकृत हो उठे ।
        जिस दिन एक भी बालक आपके लक्ष्य के अनुरूप तैयार हो गए उस दिन आपके जीवन का उद्देश्य और संकल्प पूरा होगा । और तब तक आप न थकेंगे न रुकेंगे ।

वह देखो पास खड़ी मंजिल , इंगित कर हमें बुलाती है।
साहस से बढ़ने वालों के माथे पर तिलक लगाती है।।

आपके 51 वें जन्मदिवस के सुअवसर पर बहुत बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएँ आप सदा प्रसन्न निरोग व दिर्घायु हो तथा समाज सेवा में सदैव तल्लीन रहें सपरिवार स्वस्थ रहे मस्त रहे।

                                     शुभेच्छु

                            प्रहलाद चन्द्र लखलिया।
                              एवं आत्मीय स्वजन।

   

     प्रधान संपादक

खिलावन प्रसाद द्विवेदी।

Khilawan Prasad Dwivedi

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