खिलावन प्रसाद
अब अख़बार नहीं, धंधा चलता है,
अब अख़बार नहीं, धंधा चलता है,
हर सुर्ख़ी के पीछे कोई दलाल पलता है।
सच को दबाने की बोली लगती है,
जो बिक गया, वो सबसे ऊँचा दिखता है।।
स्याही अब ईमान पर भारी पड़ गई,
ख़बरें भी अब बाज़ारों में बिक गईं।
हर पन्ना झूठ का गवाह बन बैठा,
हर हेडलाइन का सौदा तय हो गया।।
सुबह जो अख़बार दरवाजे पर गिरता है,
असल में वो जमीर को कुचलता है।
हर खबर के पीछे साजिशों की बू आती है,
अब सच्चाई नहीं, दलाली छपती है।।
जिस दिन ये झूठा महल गिरेगा,
हर बिके हुए चेहरे का सच दिखेगा
खिलावन प्रसाद द्विवेदी ।