खिलावन प्रसाद
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अब अख़बार नहीं, धंधा चलता है,
अब अख़बार नहीं, धंधा चलता है,हर सुर्ख़ी के पीछे कोई दलाल पलता है।सच को दबाने की बोली लगती है,जो बिक…
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अब अख़बार नहीं, धंधा चलता है,हर सुर्ख़ी के पीछे कोई दलाल पलता है।सच को दबाने की बोली लगती है,जो बिक…
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