अंतर्राष्ट्रीय

वैश्विक संघर्षों के बीच भारत ने संयुक्त राष्ट्र में किया बदलाव का आह्वान, कहा ‘जरूरी हैं सुधार’

संयुक्त राष्ट्र: संयुक्त राष्ट्र अगले साल अपनी 80वीं वर्षगांठ पूरी कर रहा है। इस बीच भारत इस बात पर जोर दिया है कि वर्तमान एवं भविष्य की वैश्विक चुनौतियों से निपटने में संगठन की ‘प्रासंगिकता’ बनाए रखने के लिए इसमें सुधार करना जरूरी है। इस साल दुनियाभर के नेताओं ने वैश्विक शासन में बदलाव और सतत कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वाकांक्षी समझौतों पर हस्ताक्षर किए। जब विश्व के नेता सितंबर में महासभा के उच्च स्तरीय 79वें सत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में एकत्र हुए, तो उन्होंने ऐतिहासिक ‘भविष्य की संधि’ को सर्वसम्मति से अपनाया। इस दस्तावेज में शांति और सुरक्षा, सतत विकास से लेकर जलवायु परिवर्तन, डिजिटल सहयोग, मानवाधिकार, लैंगिक मामलों, युवा एवं भावी पीढ़ियों तथा वैश्विक शासन में परिवर्तन से जुड़े विषयों को शामिल किया गया है।

स्पष्ट है भारत का रुख 

सुरक्षा परिषद की स्थायी एवं अस्थायी श्रेणियों में विस्तार समेत इसमें सुधार के लिए वर्षों से किए जा रहे प्रयासों में भारत अग्रणी रहा है। भारत का कहना है कि 1945 में स्थापित 15 देशों की परिषद 21वीं सदी के उद्देश्यों के लिए उपयुक्त नहीं है और यह समकालीन भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित नहीं करती। भारत ने इस बात को रेखांकित किया है कि वह परिषद में स्थायी स्थान का सही मायनों में हकदार है।

पीएम मोदी ने कही थी ये बात 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र के ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ में अपने संबोधन के दौरान कहा था, ‘‘सुधार प्रासंगिकता की कुंजी है वैश्विक कार्रवाई वैश्विक महत्वाकांक्षा से मेल खानी चाहिए।’’ संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से मोदी ने ऐसे समय में परिवर्तन का आह्वान किया, जब दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध, इजरायल-हमास युद्ध एवं आतंकवाद, जलवायु संकट, आर्थिक असमानता और महिलाओं के अधिकारों पर हमलों समेत कई संघर्षों से जूझ रही है। इन वैश्विक चुनौतियों के बीच भारत ने समाधान तक पहुंचने और संघर्षों को सुलझाने के लिए बातचीत और कूटनीति की लगातार वकालत की है।

एस जयशंकर ने क्या कहा था?

सितंबर में महासभा के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर के संबोधन ने भारत के एक मजबूत रुख को दर्शाया। उन्होंने पाकिस्तान को चेतावनी देते हुए कहा कि पड़ोसी देश की ‘‘सीमा-पार आतंकवाद की नीति’’ कभी सफल नहीं होगी और उसे अपने ‘‘कृत्यों के परिणामों का निश्चित तौर पर सामना करना होगा।’’

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने क्या कहा?

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सुधार की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘यह ज्ञात तथ्य है कि 21वीं सदी की चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसे समस्या-समाधान तंत्र की आवश्यकता है जो अधिक प्रभावी और समावेशी हो। हम अपनी पुरानी पीढ़ियों के लिए बनाए गए तंत्र से अपनी भावी पीढ़ियों के लिए उपयुक्त भविष्य नहीं बना सकते।’’ गुटेरेस ने कहा कि आज जो ज्वलंत मुद्दे हैं, उनमें से कई की कल्पना 1945 में संयुक्त राष्ट्र के बहुपक्षीय ढांचे के निर्माण के समय नहीं की गई थी। शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की संयुक्त राष्ट्र की क्षमता सवालों के घेरे में हैं।

यह भी जानें

इस बीच यहां यह भी बता दें कि, पाकिस्तान एक जनवरी 2025 से दो साल के कार्यकाल के लिए गैर-स्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल होगा। इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान अपने इस कार्यकाल का उपयोग जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को उठाने के लिए करेगा। विश्व निकाय को 2025 में डोनाल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में पुनः वापसी के कारण भी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है। ट्रंप को संयुक्त राष्ट्र की आलोचना करने के लिए जाना जाता है।

Khilawan Prasad Dwivedi

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