
*पत्रकारिता कभी मिशन थी पर उद्योग घरानों के दखल की वजह से वह मशीन बन गई*
*पत्रकारिता कभी मिशन थी पर उद्योग घरानों के दखल की वजह से वह मशीन बन गई*
– बस्तर जिला पत्रकार संघ की ओर से आयोजित परिचर्चा में वरिष्ठ पत्रकार पी. साईंनाथ ने कहा
– वर्तमान दौर में पत्रकारिता एवं इससे जुड़ी चुनौती विषय पर परिचर्चा आयोजित
जगदलपुर। बस्तर जिला पत्रकार संघ की ओर से वर्तमान दौर में पत्रकारिता एवं इससे जुड़ी चुनौती विषय पर परिचर्चा का आयोजन मंगलवार को चेंबर भवन में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता देश के जाने माने पत्रकार पी. साईनाथ नई दिल्ली थे। कार्यक्रम्र की अध्यक्षता संघ के अध्यक्ष मनीष गुप्ता ने की। मंच पर संघ के पूर्व अध्यक्ष सुरेश रावल, वरिष्ठ पत्रकार रवि दुबे और राजेंद्र तिवारी मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत से पहले वरिष्ठ पत्रकार नरेश मिश्रा ने पी. साईंनाथ का परिचय दिया और बताया कि वे किस तरह से पिछले साढ़े चार दशक से देश में ग्रामीण पत्रकारिता पर काम कर रहे हैं। उनकी संस्था पीपल्स आर्काइव रूरल इंडिया देश में ग्रामीण क्षेत्र की पत्रकारिता पर लंबे समय से उल्लेखनीय काम कर रही है। वे विश्व के सबसे प्रतिष्ठित रेमेन मैग्सेसे पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित हैं। इस दौरान नरेश मिश्रा ने कहा कि बस्तर में एक ऐसे पत्रकार की हत्या कर दी गई जो सिर्फ सच दिखाना और बताना चाहता था। मुकेश चंद्रकार की हत्या चिंतन का विषय है, ग्रामीण पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि उसी देश का लोकतंत्र मजबूत होगा जहां पत्रकारिता मजबूत होगी। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पी. साईंनाथ ने कहा कि बस्तर के पत्रकार के सामने पुलिस और नक्सली दोनों बड़ी चुनौती हैं। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और मीडिया में जो अंतर है उसे समझने की जरूरत है। पत्रकारिता का औद्योगिकरण जो बीते कुछ सालों में हुआ उसे समझना होगा और उस वजह से बदली पत्रकारिता को भी जानना होगा। अब पत्रकारिता मिशन नहीं मिशन बनकर रह गई है। मीडिया अब एंटरटेनमेंट है। पत्रकारिता में औद्योगिक घरानों का दखल तेजी से बढ़ता गया और पत्रकारिता भी उसी गति से बदलती गई। अडानी से लेकर अंबानी तक का दखल आज बड़े मीडिया घरानों में है। विश्व का सबसे अमीर आदमी और अमेजन का संस्थापक जेफ बेजोस आज वाशिगंटन पोस्ट का संचालन कर रहा है। वह अमेरिका के चुनावों में अपने मुताबिक खबरें चलवाता है। चुनाव को प्रभावित करता है। ठीक इसी तरह का काम हमारे यहां भी होने लगा है। मीडिया के जरिए वही दिखाया और बताया जा रहा है जो कुछ लोग दिखाना चाहते हैं। कोविड के वक्त सरकार ने कहा कि मीडिया इमरजेंसी सेवा होगी लेकिन उसी दौर में सबसे ज्यादा मीडिया कर्मी मीडिया संस्थानों से निकाले गए। जबकि नियम है कि किसी भी इमरजेंसी सेवा के कर्मी को आपात स्थिति में उसके काम से अलग नहीं किया जा सकता। पी. साईंनाथ ने सरकार की ओर से समय-समय पर प्रस्तुत किए जाने वाले आंकड़ों पर भी अपनी बात रखी और बताया कि कैसे सरकारें जो आंकड़े हमारे सामने लाती हैं और उनमें असलियत में कितना अंतर होता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में रिपोर्टिंग को खत्म करने का प्रयास हो रहा है। जो सच दिखाता या लिखता है उसे अलग-अलग एजेंसियों के जरिए चुप कराने का काम किया जाता है। यह हाल के वर्षों में हमने देखा है। पी. साईंनाथ ने बस्तर के पत्रकारों से कहा कि आप सजग होकर काम करें। कार्यक्रम का संचालन संघ के कोषाध्यक्ष सुब्बा राव ने और आभार प्रदर्शन सचिव धर्मेंद्र महापात्र ने किया। इस दौरान संघ के उपाध्यक्ष निरंजन दास, सह सचिव प्रदीप गुहा समेत संघ के सदस्य मौजूद थे।
*पत्रकार मुकेश चंद्रकार के नाम से देंगे 50 हजार की फैलोशिप*
ग्रामीण क्षेत्र में उत्कृष्ठ पत्रकारिता करने वाले बस्तर के पत्रकारों को अब हर साल पीपल्स आर्काइव रूरल इंडिया संस्था के माध्यम से पत्रकार स्व. मुकेश चंद्रकार की स्मृति में 50 हजार रुपए की फैलोशिप दी जाएगी। यह घोषणा पी. साईंनाथ ने कार्यक्रम के दौरान की। उन्होंने कहा कि बस्तर जिला पत्रकार संघ इसके लिए एक कमेटी बना ले और उसके माध्यम से उत्कृष्ठ रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकार को हम फैलोशिप देंगे। मालूम हो कि इसी साल जनवरी में बीजापुर के पत्रकार मुकेश चंद्रकार की एक ठेकेदार ने बेरहमी से हत्या कर दी थी। मुकेश उस ठेकेदार के भ्रष्टाचार से जुड़ी खबरें बना रहे थे।
*बस्तर के पत्रकारों पर हमेशा सच दिखाने पर हमले हुए*
संघ के अध्यक्ष मनीष गुप्ता ने कार्यक्रम में कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता की जो चुनौतियां हैं उस पर चिंतन करने के लिए हम यहां जुटे हैं। मुकेश चंद्रकार की हत्या ने हमें विचार करने पर विवश किया है। बदलते दौर में हमें किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए आज यही जानने का अवसर है। आगे वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र तिवारी ने कहा कि बैलाडीला की पहाडिय़ों से लोहा निकालकर केंद्र और राज्य सरकार हर साल हजारों करोड़ रुपए कमाती हैं, लेकिन इसके एवज में बस्तर को क्या मिला यह विचार करने का विषय है। बस्तर में नक्सलवाद की चुनौती के बीच हमारे पत्रकार काम कर रहे हैं। ८० के दशक से आज तक बस्तर के पत्रकारों पर सिर्फ इसलिए हमले हुए क्योंकि उन्होंने सच्चाई दिखाने का प्रयास किया। बस्तर जिला पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष सुरेश रावल ने कहा कि पत्रकारिता करने से बड़ी चुनौती पत्रकार बनना है। बस्तर में हो चाहें दिल्ली या भोपाल में हर जगह का पत्रकार चुनौती का सामना कर रहा है। उन्होंने पत्रकार साईं रेड्डी, नेमीचंद जैन की हत्या का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आज के दौर में पत्रकारिता करते हुए अति उत्साही हो जाना भी घातक है। रवि दुबे ने कहा कि मौजूदा परिस्थित के अनुसार लेफ्ट-राइट देखकर पत्रकारिता करना चाहिए।